बकरी पालन

बकरी पालन एक परिचय-बकरी पालन प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन-पोषण के साथ संभव है। इसके उत्पाद की बिक्री हेतु बाजार सर्वत्र उपलब्ध है।

 

बकरी

 

बकरियों की संख्या के आधार पर भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। भारत में बकरियों की उन्नितशील 21 किस्में हैं। भारत में बकरियों की सख्ंया 124 मिलियन है, पूरे विश्व की बकरियों की संख्या का 16 प्रतिशत भाग भारत में है। पूरी बकरियों की संख्या की 75 प्रतिशत से अधिक जंगली जातियाँ है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की बकरी पालन करना प्रमुख पसंद है क्योंकि बकरियां किसी भी वातावरण को आसानी सहन कर लेती है, उन पर व्यय कम होता है अधिक उर्वरता यानि अधिक से अधिक बच्वे देती है कम खाद्य प्रबंधन की आवयकता होती है, ज्यादा खाद्य को उपयोग में बदलने की क्षमता होती है और इस व्यवसाय में कम जोखिम भी रहता है।

हमारे देश में बकरियाँ 1.23 हजार मीट्रिक टन दूध देती है जो कि कुल दूध उत्पादन का 3 प्रतिशत है। 370 हजार मीट्रिक टन माँस का उत्पादन करती है जो कि कुल माँस उत्पादन का 40 प्रतिशत है। 7.6 हजार मीट्रिक टन खाद्य एवं 58 मीट्रिक टन पर पश्मीना फर का उत्पादन करती है। इस सबके अतिरिक्त बकरी की विष्ठा से खाद्य तैयार होती है जिसमें नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की मात्रा अन्य खादों की तुलना में अधिक होती है।

अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से छोटे तथा भूमिरहित किसानों की बकरियाँ रीढ़ की हड्डी साबित होती है। जब किसी कारण से फसलें नष्ट हो जाती है। तब बकरियाँ पूरे वर्ष लोगों की जीविका चलाने में सहायक होती है। बकरियाँ आय बढ़ाने में, पूँजी संचय में, रोजगार दिलाने में और घर के लोगों के पोषण को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनका आकार छोटा होने के कारण यह आसानी से पाली जा सकती है|

बकरियों के लिए कम स्थान की आवश्यकता होती हैं एवं महिलाओं व बच्चों द्वारा आसानी से नियंत्रित की जा सकती हैं। इनको रखने पर व्यय बहुत कम होता है अतः इनको गरीबों की गाय के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि हमारे देश में ज्यादातर ग्रामीण भागों में रहने वाले लोग गरीबी रेखा से नीचे ही निवास करते हैं।

अतः वह आसानी से तथा सुविधापूर्वक बकरी पालन कर सकते हैं। बकरी पालन मिश्रित खेती में एक साधारण किसान का लाभकारी व्यवसाय साबित होता है। नैसर्गिक विपदा जैसे बाढ़, सूखा आदि के कारण किसानों को बहुत आर्थिक नुुकसान उठाना पड़ता है ऐसे समय में अगर यह व्यवसाय के रूप में स्वीकारा जाए तो लोगों का आर्थिक तथा सामाजिक स्तर बढ़ सकता है।बकरियाँ पहाड़ों जैसे अनुउपजाऊ जगहों तथा मरूस्थल जैसी जमीनों में आसानी से पाली जा सकती है।

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