बकरी की नस्लें

बकरियों की भारतीय नस्लें: – वैसे तो भारत में बकरियों की बहुत सी स्थानीय नस्लें पायी जाती है,पर राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो द्वारा सिर्फ 34 नस्लें ही पंजीकृत है। जिनमे से कुछ बकरियों की नस्लों को उत्पादन के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है

दुधारू नस्लें: – इसमें जमुनापारी, सूरती, जखराना, बरबरी एवं बीटल आदि नस्लें शामिल हैं।


माँसोत्पादक नस्लें: – इनमें ब्लेक बंगाल, उस्मानाबादी, मारवाडी, मेहसाना, संगमनेरी, कच्छी तथा सिरोही नस्लें शामिल हैं।

ऊन उत्पादक नस्लें: इनमें कश्मीरी, चाँगथाँग, गद्दी, चेगू आदि है जिनसे पश्मीना की प्राप्ति होती है।

 



 


इनमें से कुछ प्रमुख बकरियों का विवरण निम्न है:-

जमुनापारी: – यह इटावा, मथुरा आदि जगहों पर पाई जाती है। यह दूध तथा माँस दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करती है, यह बकरियों की सबसे बड़ी जाति है। इसका रंग सफेद होता है और शरीर पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, कान बहुत लम्बे होते हैं। इनके सींग 8-9 से.मी. लम्बे और ऐठन लिए होते हैं। जमुनापारी जाति की बकरियों का दूध उत्पादन 2-2.5 लीटर प्रतिदिन तक होता है। यह नस्ल उत्तर-मध्य भारत लिए उपयुक्त है।

बारबरी: – यह बकरी एटा, अलीगढ़ तथा आगरा जिलों में पाई जाती है। यह मुख्यतः माँस उत्पादन के उपयोग में लाई जाती है यह आकार में छोटी होती है। इनमें रंग की भिन्नता होती है। कान नली की तरह मुड़े हुए होते हैं। सफेद शरीर पर सामान्यतः भूरे धब्बे तथा भूरे पर सफेद धब्बे पाए जाते हैं। यह नस्ल मध्य भारत के लिए उपयुक्त है।

बीटल: – यह नस्ल दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त है। यह  पंजाब के गुरदासपुर,और उसके आस पास पाई जाती है इसका शरीर आकार से बड़ा तथा काले रंग पर सफेद या भूरे धब्बे पाए जाते है बाल छोटे तथा चमकीले होते हैं। कान लम्बे लटके हुए तथा सर के अन्दर मुड़े हुए होते हैं।

ब्लैक बंगाल: – यह नस्ल पूरे पूर्वी भारत में विशेषकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार में पाई जाती हैं। यह छोटे पैर वाली नस्ल है। इनका कद छोटा होता है। इनका रंग काला होता है। नाक की रेखा सीधी या कुछ नीचे दबी हुई होती है। बाल छोटे तथा चमकीले होते हैं। पैर कुछ नीचे कान छोटे चपटे तथा बगल में फैले होते हैं। दाढ़ी बकरे बकरी दोनों में होती है।





ओस्मानाबादी: – यह नस्ल महाराष्ट्र के ओस्मानाबाद जिले में पाई जाती है। यह भी मुख्यतः माँस के लिए पाली जाती है। बकरियों का रंग काला होता है। साल में आसानी से दो बार बच्चे देती है। यह बकरी लगभग आधे ब्याँत में जुड़वा बच्चे देती है। 20-25 से.मी. लम्बे कान होते हैं। रोमेन नाक होती है।

सूरती: – यह नस्ल सूरत (गुजरात) में पाई जाती है। यह दुधारू नस्ल की बकरी है। इसका रंग अधिकतर सफेद होता है। कान मध्यम आकार के लटके हुए होते हैं, सींग छोटे तथा मुड़े हुए होते हैं। यह लम्बी दूरी चलने में असमर्थ होती है।

मारवारी: – यह बकरी की त्रिउद्देशीय जाति (दूध, माँस व बाल) के लिए पाली जाती है, जो राजस्थान के मारवाड़ जिले में पाई जाती है यह पूर्णतः काले रंग की होती है। कान सफेद रंग के होते हैं। इसके सींग कार्कस्क्रू की तरह के होते हैं। यह मध्यम आकार की होती है।

 

सिरोही: – यह बकरी की नस्ल राजस्थान के सिरोही जिले में पाई जाती है। यह नस्ल दूध तथा माँस के काम आती है। इनका शरीर मध्यम आकार का होता है। शरीर का रंग भूरा जिस पर हल्के भूरे रंग के या सफेद रंग के चकते पाए जाते हैं। कान पत्ते के आकार के लटके हुए होते हैं, यह लगभग 10 से.मी. लंबे होते हैं, थन छोटे होते हैं।

कच्छी: – यह नस्ल गुजरात के कच्छ जिले में पाई जाती है। यह बड़ें आकार की दुधारू नस्ल है। बाल लंबे एवं नाक उभार लिए हुए होती है। सींग मोटे, नुकीले तथा ऊपर व बाहर की ओर उठे हुए होते हैं। थन काफी विकसित होते हैं।

गद्दी: – यह हिमांचल प्रदेश के काँगडा कुल्लू घाटी में पाई जाती है। यह पश्मीना आदि के लिए पाली जाती है कान 8.10 सेमी. लंबे होते हैं। सींग काफी नुकीले होते हैं। इसे ट्रांसपोर्ट के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। प्रति ब्याँत में एक या दो बच्चे देती है।

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